बुधवार, 16 दिसंबर 2015

चन्द माहिया : क़िस्त 25


 

क़िस्त 25

 

1

टूटा जो खिलौना है

ये तो होना था

किस बात का रोना है ?

 

2

नाशाद है खिल कर भी

प्यासी है नदिया

सागर से मिल कर भी

 

3

कुछ दर्द दबा रखना

मोती-से आँसू

पलकों में छुपा रखना

 

4

इतना तो बता देते

क्या थी ख़ता मेरी ?

फिर जो भी सज़ा देते

 

5

बस हाथ मिलाते हो

एक छलावा सा

रिश्ता न निभाते हो


                                        सं 21-10-20

गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

चन्द माहिया : क़िस्त 24

माहिया :  क़िस्त 24

:1:

ये इश्क़, वफ़ा,क़समें
सुनने में आसाँ
मुश्किल है बहुत रस्में

:2:

दिल क्या चाहे जानो
मैं न बुरा मानू
तुम भी न बुरा मानो

  :3:
सच कितनी हसीं हो तुम
चाँद मैं क्या देखूं
ख़ुद माहजबीं हो तुम

:4:
जाड़े की धूप सी तुम
फूल पे ज्यों शबनम
लगती हो रूपसी ,तुम !

:5:
भींगा न मेरा आंचल
लौट गए घर से
बरसे ही बिना बादल


-आनन्द पाठक

[सं12-06-18]

रविवार, 6 दिसंबर 2015

चन्द माहिया ; क़िस्त 23

चन्द माहिया : क़िस्त 23

:1:
रिश्तों की तिजारत में
ढूँढ रहे हो क्या
इस दौर-ए-रवायत में

:2:

क्या वस्ल की रातें थीं
और न था कोई
हम तुम थे, बातें थीं

:3:
कुर्सी से रहा चिपका
कैसे मैं जानू
ये ख़ून बहा किसका


:4:
अच्छा न बुरा जाना
दिल ने कहा जितना
 उतना ही सही माना

:5:
वो आग लगाते हैं
फ़र्ज़ मगर अपना
हम आग बुझाते हैं


-आनन्द.पाठक-
[सं 12-06-18]