रविवार, 26 अक्तूबर 2014

चन्द माहिया : क़िस्त 10



:1: 

रंगोली आँगन की
देख रही राहें
छुप छुप कर साजन की

:2:


धोखा ही सही ,माना

अच्छा लगता है 
तुम से धोखा खाना

:3:


औरों से रज़ामन्दी

महफ़िल में  तेरी 
मेरी ही जुबांबन्दी ?

:4:


माटी से बनाते हो 

क्या मिलता है जब
माटी में मिलाते हो ?

:5:


सच ,वो, न नज़र आता 

कोई है दिल में
जो राह दिखा  जाता 

-आनन्द.पाठक-

[सं 15-06-18]


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