शनिवार, 25 जुलाई 2009

गीत 16 : वह बैसाखी ले एक ....

वह बैसाखी ले एक हिमालय नाप गए

मैं उजियारी राहों में भटक गया हूँ
वह अँधियारी राहों से चलते आए
मैं आदर्शों का बोझ लिए कंधों पर
वह ’वैभव’ हैं ’ईमान’ बेचते आए
मैं चन्दन,अक्षत,पुष्प लिए वेदी पर
वह चेहरा और चढा़ कर देहरी लांघ गए

वह हर दर पर शीश झुकाते चले गए
मैं हर पत्थर को पूज नहीं पाता हूँ
जिनको फूलों की खुशबू से नफ़रत थी
उनको फूलों का सौदागर पाता हूँ
मैं हवन-कुण्ड में आहुति देते फिरता हूँ
वह मुट्ठी गर्म किए ’सचिवालय’ नाप गए

उनके आदर्श शयन कक्ष की शोभा है
मैं कर्म-योग से जीवन खींच रहा हूँ
वह मदिरा के धार चढा़ आश्वस्त रहे
मैं गंगाजल से विरवा सींच रहा हूँ
मैं चन्दन का अवलेप लिए हाथों पर
वह ’रावण’ की जय बोल तिलकश्री छाप गए


-आनन्द

2 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

वह मदिरा के धार चढा़ आश्वस्त रहे
मैं गंगाजल से विरवा सींच रहा हूँ
बहुत खूब -- बहुत सुन्दर

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) ने कहा…

जिनको फूलों की खुशबू से नफ़रत थी
उनको फूलों का सौदागर पाता हूँ
namaskaar pathak ji aap ka parichay taneja ji se prapt kiya aap ki lekhni me bhut dhaar hai aur samaaj ki kamjoor nabj par pkad bhi ,, sabse achhi baat ye hai ki aap sachhai likhte hai bhale vo tikhi ho ye layne yahi prdarsit karti hai
mera prnaam swikaar kare
saadar3
praveen pathik
9971969084