गुरुवार, 14 मई 2009

गीत 02[10] : किसी का प्रणय तन-मन हूँ ....

गीत  02[10]: किसी का प्रणय तन मन हूँ

किसी का प्रणय तन-मन हूँ ,किसी की कल्पना भी हूँ

मैं किसी  का एक वीणा- तार कम्पन
या किसी मनु सा अनागत गहन चिंतन
किसी का अंक-शायी हूँ , किसी की कामना भी हूँ .
किसी का प्रणय तन-मन हूँ....

रात भर बंदी बनाई रही कलिका
देखती है सुबह उड़ना निठुर अलि का
कहीं अभिशप्त हूँ परित्यक्त ,कहीं आराधना भी हूँ .
किसी का प्रणय तन-मन हूँ....

कहीं सिन्दूर हूँ मैं चिर सुहागन का
किसी का एक पावन दीप आँगन का
किसी को मैं अपावन हूँ ,किसी की साधना भी हूँ
किसी का प्रणय तन-मन हूँ...

कल्प से जलता रहा दीपक सरीखा
पी रहा हूँ घन अँधेरा मैं किसी का
किसी को एक पत्थर भर ,किसी की अर्चना भी हूँ
किसी का प्रणय तन-मन हूँ...

मैं किसी को एक अनबूझी पहेली
औ’ प्रतीक्षा मैं कोई बैठी अकेली
किसी को मैं अयाचित हूँ ,किसी की याचना भी हूँ
किसी का प्रणय तन-मन हूँ...

-आनन्द.पाठक-
[ सं 15-06-18]


2 टिप्‍पणियां:

Ajay K.C.Mungeri ने कहा…

नमस्ते सर जी 💐🙏
नवबर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 🎉

Ajay K.C.Mungeri ने कहा…

सर जी
ये गीत क्या बह्र में है?