गुरुवार, 22 नवंबर 2007

दोहे ०७...

साठ साल को तौलते ,पांच साल से लोग
पलडे तो मेढक भरे ,डंडी पर अभियोग

आवत ही हर्षण लगे ,नैनन भरे सनेह
'आनंद' तहां न जाइए 'वोटन' बरसे मेह

बैठे-बैठे खडे हुए , नेता जी तत्काल
वोट काटने आ गए दो-चार 'डमी' के साथ

सौदेबाजी चल रही चार दिना की ठाठ
राजनीति व्यापार हुई ,लोकतंत्र की हाट

होली से पहले हुआ होली का हुडदंग
पक्ष-विपक्ष करने लगा कीचड ले बदरंग

हर नेता समझा किया अपने कद को ताड़
जोगी सारे हो गए हो गए मठ उजाड़

बाहुबली का चुनाव में दर्द न बूझे कोय
संत वचन व सुभासितानी पूछत है का होय

(प्रकाशित राजस्थान पत्रिका अहमदाबाद संस्करण)

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