बुधवार, 17 अक्तूबर 2007

चुनावी दोहे 01



नेता जी बाटन लगे , लड्डू चूरन नोट -
लगता है फिर आ गया,  बेमौसम फिर वोट

स्थायी सरकार की, बात करे है लोग
मेरी गुरबत को किये ,जो स्थाई लोग

सामाजिक इन्साफ की, ऐसे देते  हाँक
नफ़रत फैली शहर में ,गाँव  गाँव में पाँक

दल बदली करने लगे ,तपे तपाये लोग
 बात कहाँ आदर्श की,अवसरवादी योग

लोकसभा देने लगी  ,निर्वाचन की टेर
एक जगह जुटने लगे,कोआ -हंस-बटेर

’गाँधी टोपी’ पहन कर,  निर्वाचन कम्पेन
शाम 'ताज' "डीनर" करें , लिए हाथ 'शेम्पेंन’

 जिसने जितनी  बेंच दी ,'टोपी' और 'जमीर '
राजनीति में हो गयी , उतनी ही जागीर

लँगड़ा है  ’स्केट’ पर  ,अँधा लिए कमान
गूंगा गुंगियाता फिरे, भारत देश महान

-आनन्द.पाठक-
[सं 18-08-18]

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