[ इन दोहों में सुधार अपेक्षित है--कॄपया प्रतीक्षा करें ---]
पलडे तो मेढक भरे, डंडी पर अभियोग
आवत ही हर्षन लगे ,नैनन भरे सनेह
'आनन' तहां न जाइए 'वोटन' बरसे मेह
सौदेबाजी चल रही चार दिना की ठाठ
राजनीति व्यापार हुई ,लोकतंत्र की हाट
होली से पहले हुआ होली का हुडदंग
पक्ष-विपक्ष करने लगा कीचड ले बदरंग
हर नेता समझा किया अपने कद को ताड़
सारे जागे हो गए, हो गए मठ उजाड़
बाहुबली का चुनाव में दर्द न बूझे कोय
संतवचन, साधुवचन, पूछत है का होय
(प्रकाशित राजस्थान पत्रिका अहमदाबाद संस्करण)